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शनिवार, 18 मई 2024

कहानी: शातिर साला

अपने शातिर साले मुकेश को घर में रखने के कारण बेकसूर नरेश को पन्द्रह दिन हवालात की हवा खानी पड़ी थी आज उन्हें पुलिस ने छोड़ा था इसमें उनके खून पसीना बहाकर जोड़े गए दो लाख रुपये खर्च हो गए उनका साला मुकेश कौनसा जुर्म करके आया है उन्हें पता नहीं था वो पूरे दो महीने उनके पास रहा था और दो महीने बाद अचानक चला गया था। उसके जाने के बाद उसके घर एक दिन पुलिस आई और मुजरिम को शरण देने तथा फरार कराने के आरोप में उसे पकड़कर ले गई थी।
       नरेश अपने पड़ोसी रितेश को सारी बात बताते हुए कह रहे थे । दिन में तो पुलिस ने उन्हें लॉक अप में बंद कर दिया था पर रात होते ही उनसे सख्ती से पूछताछ हुई पुलिस के सवालों का उनके पास कोई जवाब नहीं था। कोई वास्तव में वे इससे अनजान थे उनकी छोटी सी चाय की दुकान थी वे एक सीधे सादे नेक इंसान थे। सुबह दुकान पर चले जाते थे और शाम को घर आते थे साला जब आया था तब वे घर पर नहीं थे । उनकी पत्नी विमला ने बताया कि ऐसे ही मिलने जुलने आया है कुछ दिन रुकेगा फिर चला जाएगा लेकिन वो पूरे दो महीने रुका रहा नरेश ने तब भी इस पर ध्यान नहीं दिया था जब वो अचानक चला गया तो पत्नी विमला ने यही कहा कि उसकी प्राइवेट कंपनी में नौकरी लग गई है। नरेश कुछ नहीं बोले जब पुलिस उन्हें उठाकर ले गई तथा जब पुलिस ने कड़ी पूछताछ की तब पता चला उस पर एक लड़की के साथ दुष्कर्म का आरोप है शादी का झाँसा देकर गर्भवती करने एवं फिर धोखे से गर्भपात कराकर उसको बुरी हालत में छोड़कर आने का भी आरोप है मुकेश ऐसा संगीन जुर्म कर अपनी बहन के यहाँ आ गया था नरेश की पत्नी को यह सब मालूम था पर उसने नरेश से ये बातें छिपा ली थीं । अगर वो नरेश को यह सब बताती तो वो मुकेश को अपने घर में बिल्कुल नहीं रखता मुकेश को पहले ही पता चल गया था कि पुलिस को उसके यहाँ होने की खबर लग चुकी है विमला भी यह बात जानती थी विमला ने ही उसे वहाँ से भागने में मदद की थी तथा पैसे दिए थे। पुलिस को पूछताछ में यह पता चल गया था कि नरेश बेगुनाह है । फिर भी पुलिस उसे नहीं छोड़ रही थी पुलिस कहने था जब तक आरोपी नहीं पकड़ा जाएगा तब तक वो उसे नहीं छोड़ने वाली। विमला को पता था कि मुकेश कहाँ पर है वो बता नहीं रही थी। अपने बेगुनाह पति पर भी उसे तरस नहीं आ रहा था बल्कि अपने भाई को पुलिस के हत्थे नहीं चढ़ने देने की वो हर संभव कोशिश कर रही थी। पर पुलिस तो पुलिस थी। वो मुकेश को गिरफ्तार करने में सफल हो गई थी मुकेश के गिरफ्त आने के साथ ही पुलिस ने नरेश को छोड़ दिया था पर नरेश को दो लाख की चपत बैठे ठाले लग गई थी मानसिक प्रताड़ना मिली वो अलग नरेश जब घर आए तो विमला के चेहरे पर उनके आने की कोई खुशी नहीं थी दुख था तो इसी बात का कि उसका भाई पुलिस के हत्थे चढ़ गया था इसी दुख में उसका रो रोकर बुरा हाल था। पन्द्रह दिनों में नरेश का धंधा पूरी तरह चौपट हो गया था। पर उसे ज्यादा चिंता इसलिए नहीं थी कि उसने प्लॉट खरीदने के लिए आठ लाख रुपये जोड़कर रखे थे। उसने उन्हीं पैसों में से विमला से पैसे माँगे तो वो नरेश पर झल्ला पड़ी बोली इधर मेरा भाई मुसीबत में है और तुम्हें पैसे की पड़ी है नहीं है मेरे पास पैसे सब खर्च हो गए। यह सुनकर तो नरेश के पैरों के नीचे से धरती खिसक गई आठ लाख रुपये कैसे खर्च हो गए कहाँ खर्च हो गए उनके सामने यह बड़ा सवाल था और विमला गोल मोल जवाब दे रही थी पर नरेश के बार बार पूछने पर उसने बताया कि दो लाख रुपये तो तुमको पुलिस चँगूल से छुड़ाने में खर्च हो गया और पाँच लाख रुपये भईया का मामला रफादफा कराने में खर्च हो गए एक लाख रुपये जब वो यहाँ से फरार हुए तब मैंने उसे दिए थे वो अलग से नरेश बोले वो कहां से दिए तो विमला ने कहा कि तीन लाख रुपये की एफ डी तुड़वा दी। नरेश समझ गए थे कि साले ने उन्हें पूरी तरह कंगाल कर दिया है और विमला को इसका बिल्कुल अफसोस नहीं है वो दुख के सागर में डूब गया था तभी विमला ने उसके जख्मों पर नमक छिड़कते हुए कहा कि मुझे पन्द्रह लाख रुपये की जरूरत है कहीं से व्यवस्था कर के दो लड़की केस रफादफा करने के लिए राजीनामे के लिए पन्द्रह लाख रुपये माँग रही है मेरे भैया की जिंदगी का सवाल है पैसा तो हाथ का मैल है वो हम फिर कमा लेंगे। नरेश अत्यंत दुखी और बेबसी से बोला पन्द्रह लाख रुपये का ब्याज जानती है हर माह कितना होता है साहूकार से लो तो पाँच परसेन्ट प्रतिमाह से पिचहत्तर हजार रुपये महीने और अगर किसी महीने ब्याज अदा न करो तो वो अगले महीने मूलधन में जुड़ जाएगा इधर मेरा धंधा पूरी तरह चौपट हो गया उसे शुरु करने के लिए भी मुझे पैसों की जरूरत पड़ेगी वो कहाँ से लाऊँ मुझे इस बात की चिंता है ऊपर से तुम पन्द्रह लाख रुपये माँग रही हो अगर मेरा धंधा चल भी निकला तो महीने की तीस हजार रुपये से ज्यादा की कमाई नही होगी जिसमें बीस हजार रुपये तो घर का खर्च ही है। ब्याज के पैसे कहाँ से लाएँगे इस पर विमला नरेश से लड़ पड़ी कहने लगी मेरी तो किस्मत फूटी थी जो तुम जैसे टुचपुँजिया से मेरी शादी हुई नरेश ने झगड़ा बढ़ाना उचित नहीं समझा उसने तय कर लिया था चाहे कुछ भी हो जाए वो कर्ज किसी भी हालत में नहीं लेगा न ही आत्महत्या करेगा भले ही विमला उसे हमेशा के लिए छोड़ के चली जाए। ।
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रचनाकार
प्रदीप कश्यप

शुक्रवार, 17 मई 2024

कहानी: जेठजी

प्रमिला अपने पिता के बाद अगर किसी को सबसे अधिक सम्मान देती थी तो वो उसके जैठजी सुखरा थे सुखराम जी पुलिस में हैडकाँस्टेबल की नौकरी से रिटायर हुए थे  आज अस्सी वर्ष की आयु में उनका निधन हो गया था उनके निधन से प्रमिला को इतना दुख हुआ जितना उसके पिता के निधन के समय भी नहीं हुआ था  ।प्रमिला को वो सब कुछ याद आ रहा था जिसके कारण वो अपनी ससुराल में सुख पूर्वक रह सकी थी जिसमें उसके जेठ जी का बड़ा योगदान था।
प्रमिला की जब शादी हुई तब वो अठारह वर्ष की थी  सुखराम जी के सबसे छोटे भाई गिरधारी  जो सरकारी स्कूल में टीचर थे ।और कुँवारे थे सुखराम को उनकी शादी की चिंता थी।एक बार वे   पुलिस के किसी काम से इन्दौर आए थे यहाँ उन्हें पता चला  कि उनके जिले के  उनके समाज के रामप्रसाद जी रहते हैं जिनकी किराने की दुकान  है उनके यहाँ विभाग योग्य कन्या है तो वे पुलिस की वर्दी में ही उनके घर चले गए  रामप्रसाद जी उन्हें देखकर घबरा गए वे बोले साहब मुझसे कौनसा अपराध हो गया तो सुखराम जी सहज होकर बोले कोई अपराध नहीं हुआ मैं सरकारी डयूटी पर यहाँ आया था तो सोचा आपसे मिलता चलूँ जब उनके बीच परिचय का आदान प्रदान हुआ  तब वे एक दूसरे को अच्छी तरह पहचान गए प्रमिला को तब यह पता नहीं था चि वे उसे देखने आए हैं।  प्रमिला सहज भाव से उनकी आवभगत कर रही थी खाना उसी ने तैयार किया था जब वे खाना खाने बैठे तो उसी ने खाना परोसा भी  और आग्रह कर के खाना खिलाया भी खाना बहुत स्वादिष्द था।  सुखराम जी बहुत खुश थे ।खाना खाने के बाद रामप्रसाद जी बोले मेरी यह कन्या विवाह योग्य है इसके लिए कोई योग्य वर हो तो बताना ।तब उन्होंने सही बात बताई की  वे इसी सिलसिले में आए थे उनका छोटा भाई है गिरधारी जो सरकारी स्कूल में शिक्षक है  वो विवाह योग्य है उसी के लिए आपकी लडकी देखने आया था  जो मुझे अपनी अनुज वधू के रूप में पसंद  है मेरी और से रिश्ता पक्का  समझो  अब आप आकर लड़का देख लो अगर आपको पसंद आ जाए तो शादी का मुहुर्त निकलवाएँ। रामप्रसाद जी सुखराम जी की यह बात सुनकर खुशी से फूले नहीं समाए  उन्हें उनके किसी रिश्तेदार ने  गिरधारी के विषय में पहले ही बताया था।  दूसरे दिन ही रामप्रसाद जी गिरधारी को देखने आए उन्हें भी लड़का पसंद आ गया वे बाजार से मिठाई का पेकेट लाए कुछ रुपये और नारियल गिरधारी  के हाथों में देकर चले गए  गिरधारी को उनके भाई सुखराम जी ने ही पाला था पिता का निधन  हुआ तब   गिरधारी आठ वर्ष के थे गिरधारी अपने बड़े भाई को पितातुल्य मानते थे।  कुछ बोले नहीं पर भाभी से उन्होंने यही कहा  कि भाईसाहब का अचानक लड़की पसंद कर शादी तय करना मुझे  समझ में नहीं आ रहा है। रामप्रसाद जी तो रिश्ता पक्का कर चले गए थे । इधर जब सुखराम जी से उनकी पत्नी सरला ने देवर के मन की बात कही तो  वॅ बॅले अगर वो शादी नहीं करना चाहता तो कोई बात  नहीं  लड़की तो मुझे पसंद मेरे चाचा का लड़का  हरिहर भी विवाह योग्य है  उससे शादी करा दूँगा पर  प्रमिला को इसी परिवार में बहू बनाकर लाऊँगा यह बात सुनकर गिरधारी घबरा गए भैया के पैर छूकर बोले आप नाराज मत होइए आप के निर्णय के विपरीत जाने की मैं सोच ही नहीं सकता मैं तो कुछ दिन यहीं रहकर आपकी सेवा करना चाहता था  मुझे मालूम है आपकी तनख्वाह कम है और खर्च ज्यादा है आपके तीन बच्चे हैं । अभी मेरी तनखा भिलाकर घर का खर्च आराम से चल रहा है। अगर मेरी शादी हो गई तो फिर  मुश्किल आएगी यह सुनकर सुखराम बोले तू उसकी चिंता मत कर मैं सब कुछ सँभाल लूँगा। इस तरह प्रमिल की शादी गिरधारो से हो गई विदा के वक्त  जब प्रमिला माँ से लिपटकर रोई तब सुखराम जी ने यही कहा  कि मेरी बिटिया भी चौदह साल की है गिरधारी को मैंने अपने बेटे की तरह पाला है तं भी बेटी की  तरह ही  रहेगी। और जो सुखराम जी ने कहा वो किया भी  कुछ दिनों बाद तो प्रमिला उनमें ऐसी घुल मिल गई जैसे इसी घर की बेटी हो।  उनके होते हुए गिरधारी की यह मजाल नहीं थी कि वो प्रमिला को डाँट भी दे पीटने की बात तो और थी। शादी के बाद गिरधारी ने प्रमिला से कहा था हम बड़े भाई साहब का बहुत सम्मान करते  हैं । पिताजी तो बचपन में ही गुजर गए थे । पिता के रूप में हमने भाईसाहब को ही देखा है। माँ तो पिता के मरने के सदमें से उबर ही नहीं पा रहीं थीं भैया ने तब आठवीं की परीक्षा पास की थी  और उसी समय पुलिस में भर्तियाँ निकली तो भाईसाहब भी चले गए उन्हें पुलिस की नौकरी मिल गई भैया ने हम सबको सम्हाल लिया था मेरा स्कूल में नाम लिखवाया मँझले भैया की नौकरी लगवाई शादी की बहन की शादी की ।  भैया के कारण ही मैं दसवीं पास कर सका था जब मैंने देखा कि भाई तंग हालत में रह रहे हैं तो मैंने दसवीं पास के बाद ही नौकरी कर ली थी भैया तो मुझे कॉलेज तक पढ़ाना  चाहते थे  पर मैं भाई पर बोझ डालना नहीं चाहता था इस लिए ये  नौकरी मैंने कर ली। थी भैया थोड़े नाराज  हुए भी तो भाभी ने उन्हें समझा दिया था । भैया ने नौकरी लगने के कुछ दिन बाद ही मेरी शादी तुमसे कर दी और साथ ही यह भी कह दिया की अगले महीने से  अपनी तनख्वाह भाभी को मत देना बल्कि बहं के हाथ में देना।  कुछ दिन बाद  अपने बगल के  किराये के मकान में सुराम जी ने गिरधारी और प्रमिला की गृहस्थी जमा दी थी  तबसे चालीस वर्ष हो गए थे प्रमिला को इसी तरह रहते हुए  जेठजी के होते हुए प्रमिला ससुराल में बिंदास होकर रहीं थी आज जेठजी के निथन ने प्रमिला को अनाथ कर दिया था। उसे रह रहकर उनका बड़प्पन याद आ रहा था।  उसकी निगाह में उसके जेठजी जैसा अच्छा और नेकदिल इंसान दुनिया में कोई दूसरा नहीं  था ।
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रचनाकार
प्रदीप कश्यप  


गुरुवार, 16 मई 2024

कहानी: वृद्धाश्रम में जाने का निर्णय

पिचहत्तर वर्षीय कैलाश मौर्य को वृद्धाश्रम  में आए पूरे दस साल हो गए थे यहाँ वे सुखपूर्वक रह रहे थे। उन्हें वृद्धाश्रम में उनके बहू बेटों ने नहीं छोड़ा था। बल्कि बेटे बहुओं के दुर्व्यवहार से तँग होकर वे खुद वृद्धाश्रम  में आए थे। वृद्धाश्रम में उनके  मित्र के अग्रज पहले से ही रह रहे थे  । उनकी शादी नहीं हुई थी उनका कोई वारिस नहीं था इसलिए  वे वृद्धाश्रम में रह रहे थे जबकि वहाँ पर रहने वाले अधिकाँश बहू बेटे वाले ही थे। जिन्होंने वृद्धावस्था में अपने माता पिता को यहाँ छोड़ दिया था। कैलाश जी ने दस वर्षों में यह देख लिया था कि यहाँ जो भी आए वो कुछ दिन उदास रहे और फिर सबमें घुल  मिल गए थे  सब खुश रहते थे। कैलाश जी को भी यहाँ रहने में अच्छा लगता था। वे यहाँ व्हील चेयर पर आए थे और अब  अच्छे चल लेते थे साथ ही सेहतमंद भी थे। 
कैलाश जी तेरह वर्ष पूर्व जब शिक्षा विभाग से रिटायर हुए थे तब उनको जो फँड ग्रेच्युटी जी पी एफ की राशि मिली थी  वो बहू बेटे ने चिकनी चिपड़ी बातें कर हथिया ली थी  पैंशन भी बेटा ही निकालता था कैलाश जी की पत्नी का निधन हुए तीन साल हो गया था लड़का बीमा एजेन्ट था वे घर के मकान में रहते थे जो पहले पत्नी के नाम था  जिसे पत्नी ने मरते मरते बेटे के नाम कर दिया था क्योंकि वो नहीं चाहती थी कि उस मकान उसकी बेटी भी हिस्से के लाए दावा करे वैसे भी कैलाश जी का कोई खर्च नहीं था महीने के दो सौ रुपये भी वो खुद पर खर्च नहीं करते थे तीन साल तक सब कुछ अच्छा चलता रहा लेकिन एक दिन जब कैलाश जी सुबह माॅर्निंग वाॅक पर निकले थे तभी उन्हें अज्ञात वाहन टक्कर मार कर चला गया दुर्घटना में उनके दोनों पैर बुरी तरह जख्मी हो गए थे  जब लोगों ने उन्हे अस्पताल पहुँचा दिया तब बेटे को  खबर लगी शुरू में तो बेटे बहू ने उनका  इलाज अच्छा कराया  लेकिन वे पूरी तरह ठीक भी नहीं हुए की बेटे ने बहू के कहने में उनकी अस्पताल से छुट्टी करा दी वे चलने फिरने से मोहताज थे बहु बेटे को उनकी देखभाल करना भारी पड़ रहा था दवाएँ चल रही थीं बीच बीच में उन्हें डॉक्टर को दिखाने ले जाना पड़ता था। जिसमें उनकी पैंशन की रकम का एक बड़ा हिस्सा खर्च हो रहा था। उन्हें रोज ही बहू बेटे की डाँट फटकार और ताने सुनना पड़ते थे वे उन्हें भरपेट खाना भी नहीं देते थे । कैलाश जी को  पलँग से उतरते समय हाथ की कोहनी में चोट लग गई थी उसमें खून भी  निकला था। उन्होंने अपने बेटे से ये कहा भी पर उसने उसे मामूली चोट समझकर उस पर ध्यान ही नहीं दिया आठ दिन बाद जब वो जख्म पक गया और पीड़ा ज्यादा हुई तो बहू बेटे उल्टे उन्हीं पर झल्ला गए एक बीमारी ठीक हुई  नहीं और अब यह दूसरी बीमारी पैदा कर ली  बहू बोली इन्हें मौत भी तो नहीं आती यह बात सुनकर दर्द से कराहते कैलाश जी की आँखों में आँसू आ गए बहू बेटे तो उन्हें अकेला कमरे में छोड़कर चले गए पर उन्हें लगने लगा कि अब वो ज्यादा जी नहीं सकेंगे अगर बेटे ने इस जख्म का इलाज नहीं कराया तो गैंगरीन हो जाएगा जिसके कारण  उन्हें अत्यँत कष्टदायी मौत मिलेगी  वे यह सोचकर दुखी थे कि उनसे मिलने उनके पुराने साथी रामगोपाल जी आए रामगोपाल जी से वे अपनी हालत छिपा न सके रामगोपाल जी यह सब सुनकर बहुत दुखी हुए फिर अचानक कुछ याद कर बोले सिविल अस्पताल में जो नए सिविल सर्जन आए हैं विकास पुरोहित वो हमारे स्कूल में पढ़े हैं आपने उन्हें गणित और  फिजिक्स पढ़ाई थी मैं उनसे मिला हूँ मैंने उनसे आपका जिक्र किया था वे आपसे मिलना चाहते हैं। कैलाश जी एक क्षण को अपनी पीड़ा भूल गए और विकास की तारीफ करने लगे। फिर रामगोपाल जी उनसे यह कहकर चले गए कि शाम को मैं विकास को लेकर आऊँगा और फिर आपके इलाज की कोई व्यवस्था करेंगे। उनके जाने के बाद शाम तक का समय कैलाश जी ने बड़ी मुश्किल से बिताया  शाम को जब रामगोपाल डॉक्टर विकास को लेकर आए तो डॉ विकास ने कैलाश जी के पैर छुए और कहा कि आपकी पढ़ाई और सख्त अनुशासन  से मैं इस मुकाम पर पहुँचा हूँ फिर डॉ साहब ने उनके पैरों की जाँच की इस बीच जब हाथ का जख्म देखा तो चिंतित हो गए बोले आपको तुरँत अस्पताल में भर्ती करना पड़ेगा यह जख्म जल्दी गैंगरीन में बदलने वाला है । बहू बेटे तो यही चाहते थे कि यह बला किसी तरह टले वैसे भी उनकी पैंशन की सारी राशि  इलाज में ही खर्च हो रही थी ऐसा उनके बेटे का कहना था बेटे ने डॉ साहब से यह भी कह दिया कि आप इन्हें ले तो जा रहे हैं पर इनके इलाज में हम एक रुपया भी खर्च नहीं करने वाले सुनकर विकास बोले उसकी कोई चिंता नहीं सर की जान बचाना जरूरी  है अभी उनकी उम्र पैंसठ साल की ही तो है। विकास जी उन्हें अस्पताल ले आए  और उनका इलाज शुरू कर दिया  अस्पताल सरकारी था सिर्फ उन दवाओं पर रुपया खर्च होता था जो अस्पताल में उपलब्ध नहीं होती थीं। डॉ कैलाश के इलाज और देखभाल से वे चार महीने में ही स्वस्थ हो गए थे। थोड़े बहुत चलने भी लगे थे लेकिन अस्पताल से छुट्टी के नाम से वे घबरा जाते थे बेटे बहू के साथ रहने की कल्पना मात्र  ही उन्हें बेचैन कर देती थी बेटा इस बीच एक बार भी उन्हें देखने नहीं आया था इस डर से कि कहीं उसे इलाज के लिए पैसे नहीं देने पड़ें चार माह से कैलाश जी का ए टी म का कार्ड उसके पास था और वो उनकी पूरी पैंशन हड़प रहा था।  वे रामगोपाल जी से इस विषय में बात कर रहे थे रामगोपाल जी बोले मुझे भी ऐसा ही लगता है अगर आप वापस बेटे के पास गए तो आपका जीना दूभर हो जाएगा कैलाश जी बोले  क्या करें तब डॉ विकास जी आए और बोले सरजी इसकी चिंता आप मत करो आप मेरे घर पर चलकर आराम से रहिए हमें आपके साथ रहने में बहुत अच्छा लगेगा तभी रामगोपाल जी ने कहा उनके अग्रज कुलभूषण जिस वृद्धाश्रम में रह रहे हैं उसकी बड़ी तारीफ करते हैं यह सुनकर कैलाश जी बोले लड़के के पास रहकर तिल तिल कर मरने से तो अच्छा है कि वृद्धाश्रम में अपने हमउम्र लोगों के बीच खुशियों के साथ रहा जाए  फिर कैलाश जी ने डॉ साहब को भी इसके लिए सहमत कर लिया और वृद्धाश्रम आ गए  व्हीलचेयर उनके साथ थी जिसकी कुछ दिनों बाद जरूरत ही नहीं रही। इन दस वर्षों में डॉक्टर विकास हर गुरूवार आश्रम में आते और उनका हाल मालूम करते एक घंटे रुककर  सबका स्वास्थ्य परीक्षण करते जबकि उनका लड़का साल में एक बार आता वो भी बैंक को जीवित रहने का प्रमाण पत्र देने के लिए उसे कैलाश जी की जरूरत पड़ती अन्यथा पैंशन मिलना बंद हो जाती ए टी एम उसके पास भी था दस साल से वो पिताजी की पूरी पैंशन हड़प रहा था उनके बनाए मकान में रह रहा था इन दस सालों में उसने अपने पिता पर एक रुपया भी खर्च नहीं किया था। 
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रचनाकार
प्रदीप कश्यप 


बुधवार, 15 मई 2024

कहानी: होनहार

दलित वर्ग में जन्में  समर लाल तेइस वर्ष की उम्र में आइ ए एस अधिकारी बन गए थे जब  वे कलेक्टर बने तब उनकी उम्र मात्र पच्चीस वर्ष की थी उनकी योग्यता के सभी कायल थे खुद सी एम उनसे कइ मामलों में परामर्श करते थे। उनके ऑफिस में एक चपरासी था बसंत श्रीधर जो उनके ही गाँव का था तथा उनका हम उम्र भी ।सहपाठी वो उसे इसलिए नहीं कह सकते थे क्योंकि दबंगों के डर से मगसपुर गाँव का कोई दलित अपने बच्चों को स्कूल नहीं भेजता था।  स्कूल न जाने वालों में वे भी एक थे।
बसंत श्रीधर समरलाल जी से डरा सहमा रहता था उसे इस बात का खटका था कि अभी उसकी नई नौकरी है  कहीं  वो बदले की भावना से मुझे नौकरी से न निकाल दें क्योंकि श्रीधर के पिताजी जिन दलितों को प्रताडित करते उनमें समरलाल के पिताजी भी थे एक दिन श्रीधर की ड्यूटी समरलाल जी के साथ थी वे एक ही कार में जा रहे थे तब समरलाल जी ने श्रीधर का डर दूर करते हुए कहा था कि जब तक वो कोई ऐसा काम नहीं करेगा जो दंड योग्य हो तब तक वो किसी दुर्भावना के कारण  उसे  परेशान नहीं करेंगे फिर भी श्रीधर का डर दूर नहीं होता था।
समरलाल का बचपन  अभावों और कष्टों के बीच बीता था दलितों की बस्ती गाँव के बाहर थी  समर लाल के पिता छीतरलाल  सफाई का काम करते थे । समरलाल बचपन से ही तीक्ष्ण बुद्धि के थे कोई उनसे एक बार जो कह दे वो उसे याद रख लेते थे  मंदिर में  जो आरती भजन होते थी वो भी उन्हें पूरे याद थे पाँच वर्ष की आयु में उनके पिता ने उन्हें बकरियाँ चराने का काम सौंप दिया था  गाँव में नवरात्री के दौरान दुर्गापाठी ब्राहम्ण आए  वे मंदिर में जोर जोर से सप्तशती का पाठ करते थे। समरलाल ने उसे एक बार सुनकर ही पूरा याद कर लिया था। एक बार जब वे बकरी चरा रहे थे तब साथुओं का जत्था वहाँ से निकला वे थोड़ी देर के लिए वहाँ रुके उन्होंने जब समरलाल से बात की तो उनका ज्ञान देखकर शुद्ध संस्कृत का उच्चारण सुन चकित रह गए जब उन्होंने गुरू का नाम पूछा तो बोले मैं दलित घर का बच्चा हूँ मैं स्कूल नहीं जा सकता। तब जत्थे के प्रमुख साधु गोपाल दास यह कह के गए देखना यह बालक एक दिन बहुत बडा आदमी बनेगा।समरलाल स्कूल के सामने से रोज गुजरते थे  बच्चों को पढ़ते हुए देखते थोड़ी देर रुक भी जाते तब श्रीधर भी वहीं पढ़ता था श्रीधर मुखिया जी का लडका था पढने में बहुत कमजोर था  एक दिन बोर्ड पर शिक्षक ने कुछ  लिखा था। और सबसे पढ़वा रहे थे कोई भी छात्र उसे ठीक से नहीं पढ़ पा रहा था। श्रीधर तो एक शब्द भी ठीक से नहीं पढ़ सका था तभी समरलाल ने उस  लिखे को बिना अटके एक बार में ही पढ दिया शिक्षक  का ध्यान कहीं और था उनके मुँह से निकल गया शाबाश किसने पढ़ा इसे और जब उनकी नजर फटे कपड़े पहने समरलाल पर पढी तो उनकी त्यौरी चढ़ गई बोले तुझे ये किसने सिखाया समर कुछ नहीं बोले सर ने उन्हें दुत्कार दिया तथा चेतावनी दी की आइंदा इधर आना नहीं नहीं तो कड़ी सजा दूँगा। समरलाल वहाँ से चले गए  पर किस्मत उनके साथ थी । उनकी बस्ती में दलित नेता  कुंजीलाल आए हुए थे  उनके सामने जब समर लाल ने । अपने ज्ञान का प्रदर्शन  किया तो उन्हें बड़ी  खुशी हुई कुंजी लाल जी उन्हें शहर मे ले आए उन्हें  अपने साथ रखा  दूसरे दिन उनका सरकारी स्कूल में  नाम लिखवा दिया गया था  वे उस समय आठ वर्ष के थे उनके ज्ञान को देख  शिक्षक ने उन्हें पाँचवी कक्षा के छात्रों में बिठाया  सीधे पाँचवी की परीक्षा उनसे दिलवाई  उन्होंने उसमें पूरे जिले में सर्वाधिक अंक प्राप्त कर प्रथम स्थान प्राप्त किया था ग्यारह वर्ष में आठवीं के टॉपर रहे  पन्द्रह वर्ष की आयु में  हायर सेकेणडरी की परीक्षा में प्रदेश  में प्रथम स्थान  प्राप्त किया अठारह वर्ष में बी एस सी गणित के साथ  गल्ड मेडल से उत्तीरण की बीस वर्ष की आयु में वे युनीवर्सिटी के ऐसे छात्र थे जिन्होंने आठ सौ में से पूरे आठ सौ अक प्राप्त किए थे। समरलाल जी अपने बैच में आइ ए एस बनने वाले सबसे कम उम्र के उम्मीदवार थे पूरे देश में कोई दलित वर्ग का उम्मीदवार पहली बार पहली रैंक पर आया था। न कहीं कोचिंग की फिर भी नंबर वन देखकर   लोग हैरान थे  आज वो सबसे कामयाब अधिकारी थे दूसरी ओर श्रीधर को उनके पिता जी ने नकल कराकर आठवीं पास कराया था  और बड़ी भागदौड़ कर ये चपरासी की नौकरी दिलवाई थी। 
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रचनाकार
प्रदीप कश्यप 


मंगलवार, 14 मई 2024

कहानी: संघर्षशील बेटी

बचपन से ही संघर्षशील शारदा मुबई में अकेली रहकर एडवरटाइजिंग कंपनी चला रही थी चार सौ करोड रुपये सलाना उसका टर्न ओवर था उसका छोटा बाई निशाँत उसकी कंपनी में ही काम करता था वो वर्क फ्राम होम  करता था उसे प्रतिमाह वेतन शारदा अपनी कंपनी की मद से देती थी। 
शारदा के जन्म के पहले  उसकी माँ सावित्री की एक बेटी और थी रोशनी उसका नाम था वो अभी साल भर की भी नही हुई थी कि शारदा  गर्भ में आ गई  सावित्री इसके लिए तैयार नहीं थी उसे आशंका थी कि उसके गर्भ में लड़की ही पल रही है उसने अपने पति सत्यकाँत से कई बार कहा कि वो उसका गर्भपात करा दें लेकिन सत्यकाँत जी ने साफ मना कर दिया बोले में माँ भगवती का भक्त हूँ मैं ऐसा कभी नहीं होपे दूँगा। आखिर सावित्री की आशंका सही निकली शारदा  के जन्म पर वो बहुत रोई सत्यकाँत ने उसे खूब समझाया पर उस पर कोई असर नहीं हुआ। शारदा अपनी बहन रोशनी से पौने दो साल छोटी थी। सत्यकाँत कहते मेरी दोनों बेटियाँ बेटों से कम नहीं है मैं इन्हें पढा लिखा कर योग्य बनाऊँगा जबकि सावित्री  दो बेटी होने से दुखी रहती थी वो रोशनी से तो लाड़ प्यार करती थी पर शारदा से उसे चिढ़ थी उसके जन्म के चार साल बाद निशाँत का जन्म हुआ था निशाँत के जन्म पर सावित्री की खुशियाँ लौटी थीं। 
शारदा को कुछ भी आसानी से नहीं मिला ।उसे छोटी से छोटी चीज के लिए भी संघर्ष करना पड़ता था। जो वस्तुएँ रोशनी और निशाँत के लिए सुलभ रहतीं वो उसे संघर्ष से प्राप्त होती थी। शारदा के पिता सत्यकाँत एक सेल्स एजें सी में एकाउण्टेन्ट थे। धीरे धीरे दोनों बच्चियाँ बड़ी हुई निशाँत जब स्कूल में पढ़ रहा था तब वे कॉलेज में पढ रही थीं रोशनी ने जहाँ एम  एस सी किया वहीं शारदा ने बी कॉम एडवरटाइजिंग से करने के बाद  आई  आई एम से  एम बी ए किया सत्यकाँत जी ने तो आगे पढाने से साफ मना कर दिया था। पर शारदा ने एजुकेशन लोन लेकर अपनी पढाई पूरी की पढाई के दौरान ही उसका कैंपस में ही सिलेक्शन भी हुआ अच्छे पैकेज भी मिले पर शारदा ने सब ठुकरा दिए। बाकी सब का प्लेसमेन्ट हो गया था एक दिन प्रिन्सीपल जी  ने उसे बहुत समझाया कि वो प्लेसमेन्ट में शामिल हो। एक बड़ी कंपनी उसे लेना चाहती है अच्छा पैकेज भी दे रही है। पर शारदा ने साफ इंकार कर दिया उसके इस निर्णय से उसके माता पिता भी नाराज हो गए थे सत्यकाँत जी ने कहा  कि नौकरी नहीं करेगी  तो एजुकेशन लोन कैसे चुकाएगी शारदा बोली उसकी चिंता आप मत करो  वो मेरी जिम्मेदारी है हारकर पापा बोले जो तेरे मन में आए वो कर नौकरी करने का एक बड़ा  नुक्सान शारदा को यह भुगतना पड़ा कि उसके बॉय फ्रेन्ड ॠतुराज ने उससे ब्रेकअप कर लिया शारदा ने यह सोचकर तसल्ली कर ली अगर अभी ब्रेक अप नहीं होता तो शादी के बाद तलाक होता ऋतुराज का प्लेसमेन्ट हो गया था और उसे अच्छा पैकेज मिला था उसने जल्दी ही एक नौकरीपेशा लड़की मालती से शादी कर ली थी इधर उसकी बहन रोशनी की भी शादी हो गई थी  पिताजी उसकी शादी भी  करके जिम्मेदारी से मुक्त होना चाहते थे पर शारदा ने शादी करने से साफ इंकार कर दिया था  एम बी ए करने के बाद वो अपनी दम पर मुँबई चली गई वहाँ एक एडवरटाईजिंग कंपनी में कमीशन बेस पर काम किया दो साल में वो सब कुछ सीख गई थी दो साल बाद शारदा ने कंपनी की नौकरी छोड़कर अपनी कंपनी खोल दी थी। शारदा के हर निर्णय का उसके मम्मी पापा विरोध करते पर वो अपना निर्णय कभी नहीं बदलती थी। शारदा ने कड़ी मेहनत कर पाँच सालों में अपनी कंपनी को एक प्रतिष्ठित कंपनी में बदल दिया था सैंकडों कर्मचारी उसके यहाँ काम करते थे जिन्हें वो अच्छी सेलरी देती थी । इधर निशाँत ने भी एम बी ए कर लिया था और वो बेरोजगार था  उसके माता पिता उसे शहर से बाहर नहीं जाने देना चाहते थे। ऐसे में समस्या का समाधान निकाला शारदा ने उसने निशाँत को अपनी  कंपनी में पैंतालीस हजार रुपये प्रतिमाह पर नौकरी पर रछ लिया था उसे वर्कफ्राम होम करना था इसके लिए वो फौरन तैयार हो गया । सत्यकाँत  रिटायर हो गए थे पैंशन स्कीम से उन्हें आठ हजार रुपये पैंशन मिल रही थी जो बहुत  कम थी उसी में वे अपना घर चला रहे थे शारदा की बहन जो शादीशुदा थी उसकी आमदानी भी ज्यादा  नहीं थी।  शारदा को पता चला कि  उसकी माँ गंभीर रूप से बीमार है तो उसने  तुरंत घर आना उचित समझा। हवाई जहाज से घर आई देखा तो उसकी  माँ  गँभीर बीमार थी यह  सुनकर कि उसके पिताजी माँ का इलाज  खैराती अस्पताल  में करा रहे  हैं  जहाँ के इलाज से  उसे कोई     लाभ नहीं हो रहा था। शारदा उसे तुरँत सबसे मँहगे और अच्छे अस्पताल में ले गई  दस दिन में माँ के  इलाज पर साढ़े तीन लाख रुपये खर्च किए जिसका भुगतान शारदा ने ही किया  माँ ठीक होकर घर आ गई थी दो साल बाद जब पिताजी को हार्ट अटेक आया तब शारदा ने ही बारह लाख रुपये खर्च किए  तब कहीं पिता स्वस्थ हो सके।  एक दिन सावित्री और सत्यकाँत आपस में बात कर रहे थे सत्यकाँत कह रहे थे सोचो अगर उस समय हमने गर्भपात करा दिया होता तो हमें शारदा जैसी बिटिया नहीं मिलती  सावित्री बोली आप सही कह रहे हो हमारी बेटी सौ सौ बेटों से भी बढ़कर है भगवान उसे ऐसे ही स्वस्थ और सँतुलित बनाए रखें।
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रचनाकार
प्रदीप कश्यप 


सोमवार, 13 मई 2024

कहानी: खँडहर

प्रभात पन्द्रह वर्ष बाद अपना घर देखने आया  था वो घर जिसका निर्माण कर वो उसमें अपने परिवार के साथ मात्र तीन साल ही रहा था वही  अब पूरी तरहखँडहर में बदल चुका था उसके दरवाजे खिड़की रेलिंग पानी की टंकी पाईम सब उखाड़कर लोग ले गए थे कुछ पुराने लोग उसे पहचान गए थे पर वे भी घर की इस दशा के विषय में ज्यादा कुछ कह न सके थे।
प्रभात सरकारी स्कूल में शिक्षक के पद पर कार्यरत थे अठारह वर्ष पूर्व तक वे संयुक्त परिवार में रहते थे। उन्नीस वर्ष की आयु में जब उनकी  सरकारी नौकरी लगी थी  तब वे अपने पापा मम्मी और चार भाई बहनों के साथ किराये के मकान में रहते थे पिताजी भी सरकारी नौकरी करते थे उस वक्त उनकी तनख्वाह बहुत कम थी जिसमें महीने का खर्च मुश्किल से चलता था। ऐसे में प्भात की नौकरी ने घर की हालत सुधारने में बड़ा योगदान किया  प्रभात ने अपनी तन्ख्वाह से पाई पाई जोडकर एक प्लॉट खरीदकर उस पर छोटा सा मकान बनाया था। तब कहीं उनको किराये के मकान से मुक्ति मिली थी बाद में उसमें दो और कमरे बनवाए गए प्रभात के मार्गदर्शन एवं शिक्षण से उनके छोटे भाई मधुकर की भी सरकारी नौकरी लग गई थी प्रभात ने धन का सही प्रबंधन किया पहले प्रभात की शादी हुई फिर उसकी बहन राखी की शादी की इसके बाद उसके छोटे भाई मधुकर की शादी । परिवार को अच्छी स्थिति में लाने में प्रभात का बडा योगदान था भाई की शादी होने के बाद जब घर में जगह की कमी होने लगी तो मम्मी को जो अपनी माता पिता की तरफ से जमीन बेचने पर पचास हजार रुपये मिले थे उससे प्रभात ने एक बडा भूखंड खरीदा  और उस पर मकान बनवाया उस समय भूखण्ड इतने मँहगे नहीं थे। मकान बनवाने के बाद प्रभात ने मधुकर तथा उसकी पत्नी और बच्चों को उसमें शिफ्ट कर दिया था प्रभात की सोच यह थी कि अब वो इस मकान में आराम से रहेगा उसके बच्चे भी बड़े हो रहे थे और खर्च भी बढ़ता जा रहा था सबसे छोटा भाई भी विवाह योग्य हो गया था उसके लिए प्रभात ने दूसरे मकान में रहने के कमरे बनवाए थे। लेकिन प्रभात की किस्मत में तो कुछ ओर ही लिखा था उसकी मम्मी जिनके हाथों में वो अपनी पूरी तनख्वाह देता था उस माँ के मन में दुर्भावना पैदा हो गई थी। पिताजी रिटायर हो गए थे और वे भी नए मकान में रह रहे थे घर में कलह होने लगी थी प्रभात के बच्चे दादी के दोहरे व्यवहार का विरोध करते देवर अपनी भाभी से भी अच्छा व्यवहार नहीं करता था जीना दूभर हो रहा था माँ के मन में कपट  आ गया था प्रभात के छोटे भाई दिनकर की जिस लड़की से शादी होने जा रही थी वो सरकारी नौकरी करती थी जबकि दिनकर प्राइवेट स्कूल में पढ़ाता था माँ का अपने छोटे बेटे से बडा लगाव था प्रभात की दोनों बहनों की शादी हो गई थी। उसके चारों भाई बहन और मम्मी पापा की नजर में अब प्रभात खटक रहा था उसके बड़े होते बच्चे खटक रहे थे प्रभात की बड़ी लड़की नवमी में पढ़ रही थी प्रभात ने अपनी पत्नी से कई बार कहा कि सबके बीच एडजस्ट करके रहो तीन साल की हो तो बात है इसके बाद हम सब बच्चों की उच्च शिक्षा  के लिए महानगर आ जाएँगे पत्नी बोली कैसे एडजस्ट करूँ एक एक दिन निकालना मुश्किल हो रहा है मुझे डर है कहीं किसी दिन घर में कोई बड़ी घटना न घट जाए  एक दिन प्रभात ने माँ से कहा कि दूसरे मकान में सबके रहने की जगह है आप वहाँ चले जाओ तो माँ बोली क्यों चली जाऊँ इस मकान पर अपना अधिकार क्यों छोड़ दूँ तुझे अलग कर दूँगी तब भी इस मकान के आधे हिस्से में मेरा कब्जा रहेगा।  प्रभात को अच्छी तरह समझ आ गया था कि इन सबके बीच वो सुख चैन से नहीं रह सकेगा उसने टयूशन पढ़ाकर जो पैसे जोड़ रखे थे कुछ उसे क्रमोन्नति का ऐरियर मिला था कुछ पैसे पत्नी से लेकर शहर की एक कॉलोनी में प्लाट ले रखा था प्रभात ने जी पी एफ से फंड निकाला कुछ बैंक से कर्ज लिया कुछ पैसे उधार लेकर जुटाए और ये मकान बनाया था जिसमें  प्रभात अपने पत्नी बच्चों के साथ तीन साल रहे तीन साल बाद जब लड़की हायर सेकेण्डरी पास हुई तो मकान  में ताला लगाकर महानगर में किराये के मकान में रहने लगे अपने लड़के तथा दोनों लड़कियों का एडमीशन उन्होंने महानगर के अच्छे स्कूलों  में करा दिया था बच्चों को पढ़ाने लिखाने और योग्य बनाने भें प्रभात के पन्द्रह वर्ष गुजर गए थे प्रभात ने महानगर में होमलोन से फ्लेट  खरीद लिया था  जिसमें वो रह रहे थे जब रिटायर मेन्ट में कुछ समय ही शेष रह गया था तब वे ये मकान देखने आए थे जो रहने योग्य नहीं रह गया था। प्रभात जी ने तय कर लिया था कि रिटायर मेन्ट के बाद भी वे महानगर में ही रहेंगे।
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रचनाकार
प्रदीप कश्यप 


रविवार, 12 मई 2024

कहानी: छूटा मायका

मोहिनी की माँ  कल्याणी का निधन हुए दस वर्ष हो गए थे माँ के निधन के बाद से ही उसका मायका छूट गया था वो एक बार भी मायके नहीं आई थी दस वर्ष  बाद जब पिता किशनलाल का निधन हुआ तब वो मायक आई थी लेकिन भाई भाभी का रूखा और अपमान जनक व्यवहार देखकर वो एक लॉज में ठहरी थी आज उसके पिता की तेरहवीं थी तेरहवीं करने बाद  वो अपने पति और दोनों बच्चों के साथ घर लौट रही थी अब उसका मायका मायका नहीं रह गया था।
मोहिनी बर्थ पर लेटी पुरानी बातों को याद कर रही थी। उसने जब से होश सम्हाला था तबसे वो अपने पिता का उसके प्रति रूखा व्यवहार देख रही थी वे उससे बहुत कम बात करते थे कभी मोहिनी को पिता ने  दुलार नहीं किया था मोहिनी की माँ कल्याणी ही उसे लाड़ प्यार से रखती थी। कल्याणी कहती थी जब मोहिनी का जन्म हुआ तो उसके पिता फूट फूटकर रोए थे माँ पे गुस्सा हुए थे बेटे के लिए मन्नत माँगी थी और बेटी हो गई थी उनके दुख का सबसे बड़ा कारण यही था पन्द्रह दिन तक उन्होंने अपनी बेटी का मुँह तक नहीं देखा था। उसके जन्म से उसकी माँ की कदर भी कम हो गई थी उसके जन्म के तीन साल बाद जब उसके भाई विवेक का जन्म हुआ तब पिता के चेहरे पर मुस्कान आई उनकी खुशी का कोई ठिकाना नहीं रहा  विवेक को उन्होंने बड़े लाड़ प्यार से पाला था उसको पढ़ाया भी अच्छे स्कूल जबकि मोहिनी को वे सरकारी स्कूल में पढा रहे थे मोहिनी को फल फ्रूट उसकी माँ पिता की चोरी से देती थीं  किशनलाल सरकारी दफ्तर में बाबू थे । उन्होंने प्लॉट लेकर जो मकान बनाया था वो भी उनके ही नाम था  माँ के नाम कोई जमीन जायदाद नहीं थी हायर सेकेण्डरी पास करने के बाद पिता ने मोहिनी की पढ़ाई छुड़वा दी और उसकी शादी के लिए लड़का ढूँढ़ना शुरू कर दिया वो ऐसा लड़का  ढूँढ रहे थे जो दहेज न ले आखिर मोहित के रूप में उन्हें वो लड़का मिला  तो बहुत सस्ते में उन्होंने मोहिनी की शादी कर दी  इस बीच मोहिनी ने बीए और डी एड कर लिया था शादी के छः महीने बाद वो शासकीय प्राथमिक स्कूल में शिक्षक के पद पर नियुक्ति पाने में सफल हो गई मोहित एक कंपनी में काम कर रहे थे शादी के बाद उनका भी प्रमोशन हो गया था मोहिनी की शादी के बाद पाँच साल तक  उसका मायके में आना जाना रहा पर जब विवेक की  शादी सोनाली से हो गई तो मोहिनी का आना जाना कम हो गया था मोहिनी भी दो बच्चों की माँ हो गई थी बच्चे स्कूल भी जाने लगे थे। मोहिनी को दुख तब  होता जब वो भाभी को उससे अधिक स्नेह देते उसकी हर बात मानते और उसकी सुख सुविधा का ध्यान रखते  जबकि मोहिनी से बात तक नहीं करते थे भाई विवेक का व्यवहार भी उसके प्रति रूखा था  यह  देखकर सोनाली भी उसका अपमान करने लगी थी एक बार जब वो राखी पर आई तो उसने अपनी मम्मी का पक्ष लेकर कुछ तल्ख लहजे में सोनिया से बात कर दी सोनिया ने भइया को ऐसा भड़काया की उसने मोहिनी से राखी तक नहीं बँधवाई माँ कल्याणी ने अपनी तरफ से उसे  दो सौ रुपये दे दिए पर भैया से किसी ने कुछ भी नहीं कहा। मोहिनी उदास होकर घर आ गई  और भगवान कृष्ण की प्रतिमा को राखी बाँधकर उन्हें अपना भाई बना लिया। । विवेक ज्यादा पढ़ लिख नहीं पाया पिताजी ने उसकी  स्टेशनरी की दुकान खुलवा दी  पिताजी रिटायर  हुए तो जो फंड मिला उससे उन्होंने पाँच एकड़ जमीन सीधे बहू सोनाली के नाम से खरीद दी। जब माँ ज्यादा बीमार हुई तो  सोनाली ने उनकी सेवा करने से इंकार कर दिया तो पिताजी माँ को मोहिनी के पास छोड़ गए जब माँ का निधन हुआ तब माँ की डेडबॉडी   ले गए ये कहकर की बेटी के  यहाँ से अंतिम संस्कार करना दोषपूर्ण है।  मोहिनी कुछ नहीं बोली कहती भी क्या माँ के  निधन के बाद उन्होंने सारे गहने  सोनाली को दे दिए अपनी पेंशन भी उसे देने लगे कभी एकाध बार वे मोहिनी के घर आए भी तो पाँच रुपये वाला पारले जी का बिस्किट का पेकेट देकर   पाँच सौ रुपये का खाना खाकर चले गए  सोनाली के सामने तो मोहिनी का नाम लेना तक गुनाह था उन्होंने अपना मकान भी सोनाली के नाम पर कर दिया था। मोहिनी जब पिता के अंतिम संस्कार में आई तब पड़ोसियों ने बताया कि सोनाली  मोहिनी के पिता से बीमारी के समय बुरा बर्ताव करती थी विवेक और सोनाली कई बार उन्हें पीट भी चुके थे। उन्हें बहुत कष्टदायी मौत मिली थी।  यह बात सुनकर मोहिनी दुख प्रकट करने के अलावा कर ही क्या सकती थी आज जब वो मायके से लौट रही थी तो ये प्रण करके आई थी कि अब वो कभी अपने मायके नहीं जाएगी।
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रचनाकार
प्रदीप कश्यप